- सर्वहारा वर्ग- समाज का पैसा वॉर जिसमें किसान मजदूर एवं गरीब लोग शामिल हैं सर्वहारा वर्ग कहलाता है
- रूसी क्रांति की तारीख- रूस में फरवरी 1918 ईस्वी तक जूलियन कैलेंडर का अनुसरण किया गया था इसके बाद रूसी सरकार ने ग्रेगोरियन कैलेंडर अपना लिया जिसका अब सब ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है ग्रेगोरियन कैलेंडर जूलियन कैलेंडर से 13 दिन आगे चलता है अतः फरवरी क्रांति 7 नवंबर को संपन्न हुई थी 1905 ईसवी की क्रांति 22 जनवरी को हुई थी
- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस- सन 1975 ईस्वी में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया गया
- नई आर्थिक नीति -लेनिन ने 1921 ईस्वी में एक नई आर्थिक नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवादी मूल्यों से कुछ हद तक समझौता करना पड़ा लेकिन वास्तव में मऊ से सीख कर व्यवहारिक कदम उठाना इस नीति का लक्ष्य था
- एकतरफा अनुबंध व्यवस्था- पश्चिमी देशों में एकतरफा अनुबंध व्यवस्था एक तरह की बंधुआ मजदूरी थी वहां मजदूरों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं था जबकि मालिक कोअसीमित अधिकार प्राप्त था
- कोलोन हिंद- चीन में बसने वाले फ्रांसीसी कोलोन कहे जाते थे
- अनामी दल- Jonguain ने अनामी दल स्थापित की यह पूर्णता मास्को के कैंटोन से प्रभावी तथा आतंकी विचार युक्त पार्टी थी
- रासायनिक हथियार-नापाम ऑर्गेनिक कंपाउंड है। यह निम्न अपनी बाहों में गैसोलीन के साथ मिलकर ऐसा मिश्रण तैयार करता है जो त्वचा से चिपक कर चलता रहता है । इसका व्यापक पैमाने पर वियतनाम में प्रयोग किया गया।
- एजेंट ऑरेंज -यह एक जहर था। जंगलों को खत्म करने के लिए इसका किया जाता था पूर्ण विराम इसका यह नाम ऑरेंज पटिया वाले ड्रमों में रखे जाने के कारण पर अमेरिका ने इसका इस्तेमाल जमकर किया । जन्मजात विकलांग के रूप में इस जहर का असर आज भी नजर आता है।
- माई ली गांव- दक्षिणी वियतनाम में एक गांव था। यहां के लोगों को समर्थक मान अमेरिकी सेना ने पूरे गांव को घेरकर पुरुषों को मार डाला। औरत बच्चियों को बंधक बनाकर कई दिनों तक एक बलात्कार कर पूरे गांव में आग लगा दी। अशोक के बीच दवा एक बूढा जिंदा बच गया था जिसने इस घटना को विश्व के समक्ष उजागर किया।
- व्यक्तिवाद - वह सिद्धांत समुदाय की नहीं बल्कि व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकार को स्वीकार किया जाता है।
- घेटो- सामान्य तो यह सब मध्य यूरोपिय शहर में यहूदियों की बस्ती के लिए प्रयोग किया जाता है। आज के संदर्भ में विशिष्ट धर्म, नृजातीय पहचान वाले लोगों के साथ रहने को इंगित करता है।
- भूमि विकास- डूबी हुई जमीन को रहने, खेती करने, किसी अन्य काम के योग्य बनाना भूमि विकास कहलाता है।
- विश्व बाजार- विश्व बाजार में सभी देशों की वस्तुएं आम लोगों को खरीदने के लिए उपलब्ध रहती है। जैसे- भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई है।
- वाणिज्य क्रांति- व्यापार के क्षेत्र में होने वाला विकास और विस्तार जो जल और स्थल दोनों मार्ग से संपूर्ण विश्व तक पहुंचा है इसका केंद्र यूरोप (इंग्लैंड )था।
- औधोगिक क्रांति – Water Vapor Power से संचालित मशीनों द्वारा बड़े-बड़े कारखानों में व्यापक पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन। इसका केंद्र इंग्लैंड था। यह 1750 ईस्वी के बाद आरंभ हुआ।
- उपनिवेशवाद- उपनिवेशवाद ऐसी राजनैतिक आर्थिक प्रणाली जो प्रत्यक्ष रुप से अभिजीत अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका में यूरोपीय देशों द्वारा लागू किया गया। इसका एक मात्र उद्देश्य था , इन देशों का आर्थिक शोषण।
- गिरमिटिया मजदूर- औपनिवेशिक देशों के सनी जिन्हें एक निश्चित समझौता द्वारा निश्चित समय के लिए अंग्रेज सदृश शासक वर्ग शासित क्षेत्रों में ले जाते थे। इन्हें मुख्यता नगदी फसल जैसे गन्ना के उत्पादन में लगाया जाता था। भारत के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों पंजाब हरियाणा से गन्ना की खेती के लिए जमैका, टोबैगो, मॉरीशस ले जाया गया।
- साम्राज्यवाद - यूरोपीय देशों द्वारा एशिया और अफ्रीका के क्षेत्रों पर सैनिक शक्ति द्वारा विजय प्राप्त कर उसे अपने प्रत्यक्ष अध्ययन में रखना।
- आर्थिक मंदी- और तंत्र में आने वाली वैसी स्थिति जब उसके तीनों आधार कृषि उद्योग और व्यापार का विकास अवरुद्ध हो जाए लाखों लोग बेरोजगार हो जाए पनिया का दिवाला निकल जाए मुद्रा दोनों की बाजार में कोई कीमत नहीं रहे।
- शेयर बाजार -वह स्थान व्यापारिक और औद्योगिक कंपनियों के बाजार मूल्य का निर्धारण होता है।
- सट्टेबाजी-कंपनियों में पूंजी लगाकर उसका हिस्सा खरीदना है ताकिउसका मूल्य बढ़े और उसे बेच देना।
- संरक्षणवाद- अपने वस्तुओं को विदेशी वस्तुओं की आमद से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए विदेशी वस्तु पर ऊंची आयात शुल्क लगाना।
- न्यू डील- जनकल्याण की एक बड़ी योजना से संबंधित नई नीति जिसमें आर्थिक क्षेत्र के अलावा राजनीतिक और प्रशासनिक नीतियों को भी नियमित किया गया।
- अधिनायकवाद- वैसी राजनीति प्रशासनिक व्यवस्था जिसमें एक व्यक्ति के हाथ शक्तियां केंद्रित होती है वह व्यक्ति परिस्थितियों का लाभ उठाकर जनता के बीच नायक की छवि बनाता है।
- भूमंडलीकरण -जीवन के क्षेत्रों का एक अंतर स्वरूप जिसने दुनिया के विभागों को आपस में जोड़ दिया। संपूर्ण विश्व एक बड़े गांव के रूप में परिवर्तित हो गया है।
- पूंजीवाद- पूंजी पर आधारित एक व्यवस्था जो बाजार और मुनाफा के ऊपर टिकी है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनी- कई देशों में व्यापार और व्यवसाय करने वाली कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनी कहा जाता है। 1920 ईस्वी के बाढ़ कंपनियों का उत्कर्ष हुआ जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद काफी तेज हुआ।
- ब्लॉक प्रिंटिंग- स्याही से लगे लकड़ी के ब्लॉक पर कागज को रखकर छपाई करने की विधि को ब्लॉक प्रिंटिंग कहते हैं।
- राष्ट्रवाद -राष्ट्रवाद किसी विशेष भौगोलिक सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों के बीच व्यापक एक भावना है जो उनमें परस्पर प्रेम और एकता को स्थापित करती है आधुनिक विश्व में राजनीतिक पुनजागरण का परिणाम है
- मेटरनिख युग -ऑस्ट्रेलिया के चांसलर के रूप में मीटर निकली 18 से 15 ईसवी से 48 वीक तक शासन किया। शासनकाल के दौरान आप की राजनीति में इतनी प्रमुख भूमिका निभाई थी इस कालावधी को "मेटरनिखयुग" कहा जाता है।
- मेजनी-मेजनी इटली में राष्ट्रवादियों के गुप्त दल कार्बोनरी का सदस्य था। वह सेनापति होने के साथ-साथ गणतांत्रिक विचारों का समर्थक साहित्यकार भी । 18 30 ईसवी में नागरिक आंदोलन द्वारा मेजनी ने उत्तरी और मध्य इटली में एकीकृत गणराज्य स्थापित करने का प्रयास किया। इतने असफल रहने पर उसे इटली से पलायन करना पड़ा। 1848 ईस्वी में मेटरनिक के पराजय के बाद मैजिनी ने फिर इटली आकर इटली के एकीकरण का प्रयास किया इस बार भी वह असफल रहा और उसे पलायन करना पड़ा।
- साम्राज्यवाद की विशेषताएं -समाजवाद के उदय का कारण औद्योगिक क्रांति थी। हालांकि ऐतिहासिक दृष्टि से समाजवाद का विकास दो चरणों में हुई मार्क्स के पूर्व का समाजवाद एवं मार्क्स के बाद का समाजवाद यूरोपियन समाजवाद पुराना था। यह समाजवादी आदर्शवादी होते थे। यह समाजवाद कल्पनालोकीय है या स्वपनलोकीय के नाम से भी जाना जाता है जो व्यवहारिक नहीं था। वैज्ञानिक समाजवाद वर्ग संघर्ष के माध्यम से उभरा था |इनके विचार वाद प्रतिवाद संश्लेषण पर आधारित था इसलिए यथार्थवादी था तथा दूसरा आदर्शवादी।
- अक्टूबर क्रांति -7 नवंबर 1917 ईस्वी में बोल्शेविक ने पेट्रोग्राद के रेलवे स्टेशन, बैंक, डाकघर, टेलीफोन केंद्र, कचहरी तथा अन्य सरकारी भवनों पर अधिकार कर लिया। करेंनस्कि भाग गया और शासन की बागडोर बोल्शेविक के हाथों में आ गई जिसका अध्यक्ष लेनिन को बनाया गया इसी क्रांति को बोल्शेविक क्रांति या नवंबर की क्रांति कहते हैं इसे अक्टूबर की क्रांति भी कहा जाता है क्योंकि पुराने कैलेंडर के अनुसार यह 25 अक्टूबर 1917 ईस्वी की घटना थी।
- खूनी रविवार 1935 ईस्वी के रूस -जापान युद्ध में रूस एशिया के एक छोटे- से देश जापान से पराजित हो गया। पराजय के अपमान के कारण जनता ने Kranti कर दी। 9 जनवरी 1905 ईस्वी की लोगों का समूह प्रदर्शन करते हुए सेंट पीटर्स वर्ग स्थित महल की ओर जा रहा था। जार की सेना ने इन निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाई हजारों लोग मारे गए। यह घटना रविवार के दिन हुई इसलिए इसे खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।
- पूंजीवाद-पूंजीवाद ऐसी राजनीतिक हाथी की व्यवस्था है जिसमें निजी संपत्ति तथा निजी लाभ की अवधारणा को मान्यता दी जाती है। यह सार्वजनिक क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों में सरकारी हस्तक्षेप का विरोध करती है।
- शीत युद्ध का अभिप्राय- शीतयुद्ध प्रत्यक्ष युद्ध ना हो पर एक दूसरे राष्ट्र को नीचा दिखाने का वातावरण है । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूंजीवादी राष्ट्रों और रूस के बीच इसी प्रकार का शीत युद्ध चलता रहा।
- हिंद चीन का अर्थ- हिंद चीन का तात्पर्य तत्कालीन 2.8 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले उस प्रायद्वीपीय क्षेत्र से है जिसमें आज के वियतनाम लाओसऔर कंबोडिया आते हैं इनके उत्तरी सीमा मयनमार एवं चीन को छुती है |दक्षिण में चीन सागर है इसके पश्चिम में भी मयनमार का क्षेत्र पड़ता है।
- बाओदाई- बाओदाई उन्ननाम का राजा था 1945 ईस्वी में वियतनाम गणराज्य बन जाने के कारण 25 अगस्त 1945 ईस्वी को वह राज सिहासन छोड़ लंदन में बस गया। 1949 ईस्वी में फ्रांस ने बाओदाई को सैनिक सहायता के साथ दक्षिण वियतनाम का शासक बना दिया बाओदाई अपनी कमजोर स्थिति को समझता था। जेनेवा समझौता के बाद भी बाओदाई प्राय: फ्रांस में ही रहता था।
- जेनेवा समझौता -जेनेवा समझौता मई 1954 ईस्वी में हिंद चीन समस्या पर वार्ता हेतु बुलाए गए सम्मेलन में हुआ इसमें वियतनाम को दो हिस्सों में बांट दिया गया। लाओस तथा कंबोडिया में राजतंत्र को स्वीकार कर संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया।
- साइमन कमीशन पर संक्षिप्त टिप्पणी- भारत में संवैधानिक सुधार के मुद्दे पर विचार करने हेतु 1919 के भारत अधिनियम में यह व्यवस्था की गई थी 10 वर्ष के बाद आयोग नियुक्त किया जाएगा। यह आयोग अधिनियम में परिवर्तन पर विचार करेगा। सर साइमन के नेतृत्व में 1927 को साइमन कमीशन बना। जिस सात सदस्य आयोग का गठन किया गया उसमें एक भी भारतीय नहीं था। भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। फालत: 3 फरवरी 1928 को मुंबई पहुंचने पर साइमन कमीशन का विरोध हुआ फिर जनता संघर्ष के लिए तैयार हो गई।
- गांधी इरविन समझौता या दिल्ली समझौता -सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त कराने का उद्देश्य से सरकार की ओर से लॉर्ड इरविन तथा गांधीजी के बीच 1931 ईस्वी को एक समझौतावार्ता संपन्न हुई ऐसे ही गांधी इरविन समझौता अथवा दिल्ली समझौता कहते हैं। इसके इसके तहत गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन को स्थगित कर दिया कथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने हेतु सहमति प्रदान कर दी।
- दांडी यात्रा का उद्देश्य- दांडी यात्रा का उद्देश्य दांडी समुद्र तट पर पहुंचकर समुंद्र के पानी से नमक बनाकर, नमक कानून का उल्लंघन कर, सरकार को बताना था कि नमक पर कर बढ़ाना अनुचित फैसला है। साथी यह सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत का संकेत भी था।
- मुस्लिम लीग उद्देश्य - मुस्लिम लिंग की स्थापना 30 दिसंबर 1906 को हुई। इसका उद्देश्य था मुस्लिमों के हितों की रक्षा करना। इसकी न्यू ढाका के नवाब कलीमुल्लाह ने रखी थी। इसका उद्देश्य मुसलमानों को सरकारी सेवा में उचित स्थान दिलाना एवं न्यायधीश के पदों पर मुसलमानों का जगह दिलाना। विधान परिषद में अलग निर्वाचक मंडल बना एवं काउसिल में उचित जगह पाना।
- खिलाफत आंदोलन- तुर्की के सुल्तान (जो इस्लामिक संसार का खलीफा हुआ करता था) को प्रथम विश्वयुद्ध में (ब्रिटेन के खिलाफ तुर्की के पराजय से सुल्तान) सत्ता से वंचित कर उसके ऑटोमन साम्राज्य को विघटित कर दिया गया। अत: भारतीय मुसलमानों ने तुर्की के प्रति ब्रिटेन के नीति को बदलने के लिए खिलाफत आंदोलन प्रारंभ किया।
- रौलट एक्ट - रौलट एक्ट नियोजित सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा क्रांतिकारी विरोध एवं अराजकता पूर्ण अधिनियम था। समिति की अनुशंसा पर क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम को 21 मार्च 1919 को केंद्रीय विधान परिषद में पारित किया गया। इसके अंतर्गत एक विशेष न्यायालय के गठन का प्रावधान था। जिस के निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती थी। किसी भी व्यक्ति को बिना साक्ष्य या वारंट के कहीं भी, किसी समय, गिरफ्तार किया जा सकता था। इस एक्ट के विरोध में गांधी जी के अध्यक्षता में एक सत्याग्रह सभा आयोजित की गई और गिरफ्तारियां दी गई। 6 अप्रैल 1919 को देशव्यापी हड़ताल आयोजित हुआ।
- मेरठ षड्यंत्र- मार्च, 1929 में गोरी सरकार को श्रमिक नेताओं के मुखिया ने भारत के प्रभु सत्ता से वंचित करने का प्रयास किया। अत: उन परआरोप लगाकर बंदी बना लिया। इन्हें मेरठ में लाकर मुकदमा चलाया। इसे ही मेरठ षड्यंत्र का जाता है।
- एटक-एटक, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस का संक्षिप्त नाम है। यह भारतीय श्रमिकों का संगठन है जिसकी स्थापना 31 अक्टूबर 1920 ईस्वी को हुई थी। लाला लाजपत राय इसके प्रथम अध्यक्ष तथा दीवान जमनालाल इसके महासचिव थे।
- भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में जनजातीय समूह की भूमिका -भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में जनजातीय लोगों की प्रमुख भूमिका रही उन्नीसवीं शताब्दी की तरह बीसवीं शताब्दी में भी भारत के अनेक भागों में आदिवासी विद्रोह हुए इन विद्रोहों में रंपा विद्रोह ऑल मू विद्रोह उड़ीसा की खोर विद्रोह, यह 1914 से 1920 तक चल चला 1917 में मयूरभंज मैं संथालों ने एवं मणिपुर में फोटो ही खुशियों ने विद्रोह किया था 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय पश्चिमोत्तर प्रांत के जनजातियों ने दिव्य राष्ट्रवादी भावना दिखाई। दक्षिण बिहार के न्यू नेवी पटना का परिचय दिया इस प्रकार भारत के कोने-कोने से समय-समय पर राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया।
- जतरा भगत - जतरा भगत छोटा नागपुर क्षेत्र के राव जाति का था और अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोही नेता था । उसने समाजिक एवं शैक्षणिक सुधारों पर बल दिया। उसने एकेश्वरवाद पर बल दिया। आदिवासियों को मांस एवं आदिवासी नृत्य को छोड़ शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रेरित किया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणाम-
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्नलिखित परिणाम निकले:(1) सविनय अवज्ञा आंदोलन में समाज के विभिन्न वर्गों में राजनीतिक चेतना और उनमें अंग्रेज विरोधी भावनाएं जगाई। (2) महिलाएं मजदूर वर्ग निर्धन वर्ग अशिक्षित लोगों ने भी आंदोलन में भागीदारी निभाई और इससे आधार का विस्तार हुआ। (3) पहली बार राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं ने प्रभावी भूमिका निभाई। साथ ही महिलाओं का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश हुआ। (4) इस आंदोलन में संगठन के नए-नए तरीके अथवा रूप उभरे जैसे -- वानर सेना, मंजरी सेना, प्रभात फेरी आदि। पत्र-पत्रिकाओं द्वारा के द्वारा भी लोगों को संगठित किया गया।(5) इस आंदोलन में श्रमिक एवं कृषक आंदोलन को भी प्रभावित किया।(6) इस आंदोलन के फलस्वरुप ब्रिटिश वस्तुओं एवं वस्तुओं के आयात में गिरावट आई। (7) पहली बार ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के साथ समानता के आधार पर बातचीत की। (8) इसका मुख्य परिणाम 1935 ईस्वी में भारत का शासन अधिनियम का पारित किया जाना था इस प्रकार इस आंदोलन के कई महत्वपूर्ण परिणाम दृष्टिगोचर हुए।
- असहयोग आंदोलन प्रथम जन आंदोलन था -1920 ईस्वी में गांधी जी के नेतृत्व में चलाया गया असहयोग आंदोलन इस मायने में प्रथम जन आंदोलन था कि इससे पूर्व के सभी आंदोलन आर्थिक एवं सामाजिक के आधार पर किसी वर्ग विशेष के द्वारा अपने हितों की रक्षा के लिए चलाए गए थे जबकि असहयोग आंदोलन के कार्य ऐसे थे कि हर तरह के लोग इसमें अपना योगदान कर सकें जैसे-- सरकारी उपाधियों एवं अवैतनिक पदों का त्याग, सरकारी और अर्ध सरकारी उत्सव का बहिष्कार, सरकारी स्कूल और कॉलेजों का बहिष्कार, सरकारी न्यायालय का बहिष्कार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार आदि। जनता ने अपने स्तर के अनुरूप इन कार्यक्रमों में योगदान दिया और आंदोलन को जनआंदोलन का रूप प्रदान किया।
- स्वराज्य पार्टी की स्थापना एवं उद्देश्य-असहयोग आंदोलन की एकाएक वापसी से उत्पन्न निराशा की स्थिति में 1922 ईसवी में किया गया अधिवेशन में चितरंजन दास मोतीलाल नेहरू ने विचार रखा कि विधान परिषद का बहिष्कार करने के बजाय उस में प्रवेश कर सरकार के साथ और सहयोग किया जाए। यह प्रस्ताव पारीत नहीं हो सका तब चितरंजन दास में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से और मोतीलाल नेहरू ने महामंत्री पद से त्यागपत्र देकर अलग से स्वराज्य पार्टी पार्टी की स्थापना 1923 ईस्वी में कर दी।
- स्वराज्य पार्टी के उद्देश्य: स्वराज्य प्राप्ति, भारत में अंग्रेजों द्वारा चलाई गई सरकारी परंपराओं का अंत, 1919 ईस्वी के और अधिनियम में सुधार या उसका अंत। स्वराज दल का उदय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग नहीं था किंतु रास्ते अलग थे यह सभी नेता विधायिकाओं मैं पहुंच कर और असहयोग कर दमनकारी कानून का विरोध कर उसे पास होने से रोकने का प्रयास करते ।
- किसान आंदोलन-- भारत एवं बिहार के किसानआंदोलनों में 1917 ईस्वी के चंपारण आंदोलन का प्रमुख स्थान है। यह आंदोलन उस व्यवस्था के खिलाफ था जिसमें किसान को अपने भूमि के 3/20 हिस्से पर नील की खेती करनी होती थी। इस उपज को अत्यंत कम कीमत पर उनसे ले लिया जाता था व्यापार के घाटे को किसानों से वसूल किया जाता था। Lagaan भी बढ़ा दी गई। चंपारण के राजकुमार शुक्ल ने 1916 ईस्वी के लखनऊ अधिवेशन में किसानों की परेशानियों से अवगत कराते हुए महात्मा गांधी को चंपारण आने को कहा। गांधी ने चंपारण में सत्याग्रह चलाकर किसानों को राहत पहुंचाई। इसके अतिरिक्त 1922-23 ईस्वी में मुंगेर में शाह मोहम्मद जुबेर की अध्यक्षता में किसान सभा स्थापित हुई। 4 मार्च 1928 ईस्वी को बिहटा में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान सभा की स्थापना की। नवंबर, 1929 में सोनपुर मेला में ही स्वामी सहजानंद के अध्यक्षता में प्रांतीय किसान सभा की स्थापना की गई। श्री कृष्ण सिंह के सचिव बने। इस प्रकार बिहार में भी के संगठन के कई प्रयास हुए।
- घरेलू उद्योग- घरेलू माहौल में कम पूंजी लगाकर शुरू किए जाने वाले उद्योग घरेलु कहलाते हैं। गुड़ बनाना अचार बनाना आदि घरेलू उद्योग के उदाहरण हैं
- कुटीर उद्योग- कम पूंजी, छोटे संसाधन एवं कम व्यक्तियों के सहयोग से शुरू किए जाने वाले उद्योग कुटीर उद्योग कहलाते हैं। पापड़ निर्माण, अगरबत्ती निर्माण, गेहूं पीसने, चावल कूटना आदि कुटीर उद्योग हैं।
- 18वीं शताब्दी के भारत के मुख्य उद्योग 18वीं शताब्दी में भारत के मुख्य उद्योग वस्त्र उद्योग इसके अंतर्गत मलमल उद्योग, सिल्क तथा तसर सिल्क, सूती वस्त्र उद्योग, ऊनी कपड़े, रूई उद्योग, प्रमुख इसके अतिरिक्त सिल्क उद्योग तथा हस्तकला भी विश्वविख्यात था।
- लेसेज फेयर किसी सरकार द्वारा देश की किसी निजी आर्थिक क्रिया में हस्तछेप ना करना इसी अहस्तछेप की नीति को लेसेज फेयर के नाम से जाना जाता है । इसमें मांग एवं स्वतंत्र शक्तियां अर्थव्यवस्था में अपने आप संतुलन बना लेती है ।
- बुजुर्वा वर्ग की उत्पत्ति --पूंजीपतियों को अपने उद्योग-धंधों को चलाने एवं उसी से संबंधित अन्य अनेक कार्यों के लिए वैज्ञानिक, कुशल, सुशिक्षित, शिल्पी, प्रबंधक, मुनीम, वकील, प्रचार आदि की आवश्यकता परी। इस आवश्यकता ने एक शिक्षित मध्यमवर्ग को जन्म दिया जो बुजुर्वा वर्ग कहलाया।
- नीरूऔधोगिकरण -नए-नए मशीनों के आविष्कार ने उद्योग एवं उत्पादन में वृद्धि करऔधोगिकरण की शुरुआत की। कारखानों में पैमाने पर बंना माल तैयार हाथ माल से सस्ता होता था। बड़े कारखानों के समक्ष कुटीर उद्योग प्रतिस्पर्धा रुक नहीं पाएं और पतन के कगार पर पहुंच गए। कुटीर उद्योगों को इस प्रकार पतन होने को नीरूऔधोगिकरण जाता है।
- फैक्ट्री प्रणाली के विकास के कारण -फैक्ट्री प्रणाली के विकास का पहला प्रमुख कारण था मशीनों एवं नई -नई यंत्रों का आविष्कार। साथ इन फैक्ट्रियों में काम करने हेतु भारतीय मजदूरों की उपलब्धता ने इसके विकास की राह को आसान बना दिया।
- औधोगिकरण का प्रभाव मजदूरों पर - औधोगिकरण के फलस्वरुप बड़े बड़े कारखाने स्थापित हुए जिस के समक्ष छोटे उद्योग अपना पैर नहीं जमा सके। सामाजिक भेदभाव की शुरुआत हो गई। औधोगिकरण ने मजदूरों की आजीविका को इस तरह नष्ट-भ्रष्ट कर दिया कि उनके पास दैनिक उपयोग की वस्तुएं को खरीदने के लिए धन नहीं रहा। अब मजदूर और बेरोजगार झुंड बनाकर घूमना शुरू किया और मशीनों को तोड़ने में लग गए। अपनी स्थिति में सुधार की अपेक्षा उन्होंने आंदोलन को शुरू किया। इससे वर्ग संघर्ष की शुरुआत हुई।
- औद्योगीकरण- औधोगिकरण भारी संख्या में नई-नई मशीनों के प्रयोग को कहते हैं। वस्तुओं का उत्पादन में मानव श्रम की अपेक्षा मशीनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
- इसमें उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है जिस की खपत के लिए बड़े बाजार की आवश्यकता होती है। इसके प्रेरक तत्व के रूप में मशीनों के अलावा पूंजी निवेश, विस्तृत बाजार, परिवहन तंत्र, एवं श्रम का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
- न्यूनतम मजदूरी कानून -- कारखाना मालिकों द्वारा अधिकाधिक लाभ के उद्देश्य मजदूरों से अधिक से अधिक काम लिया जाता और मजदूरी कर दी जाती थी । इसलिए मजदूरों के लिए सन 1948 ईस्वी में न्यूनतम मजदूरी कानून पारित किया गया। इसके द्वारा कुछ उद्योगों में मजदूरी की दरें निश्चित की गई। इसी आधार पर द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह विचार रखा गया कि मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी उनके केवल गुजारा कर लेना भर ना होकर इससे कुछ अधिक हो ताकि वह अपनी कुशलता को भी बनाए रख सके। न्यूनतम मजदूरी कानून के पारित होने से मजदूरों की दशा में सुधार की शुरुआत हुई।
- स्लम पद्धति की शुरुआत -छोटे, गंदे अस्वास्थ्यकर स्थानों में जहां फैक्टरी मजदूर निवास करते थे वैसे स्थलों को 'स्लम' कहा जाता है।
- औधोगिकरण के फलस्वरुप बड़े कारखाने स्थापित हुए जिसमें काम करने के लिए बड़ी संख्या में मजदूर पहुंचने लगे। वहां रहने का कोई व्यवस्था नहीं था। मजदूर कारखाने के निकट रहे इसलिए कारखाने के मालिक उनके लिए छोटे-छोटे तंग मकान बनवाए। जिसमें सुविधाएं उपलब्ध नहीं था। इन मकानों में पानी तथा रोशनी तथा साफ सफाई की व्यवस्था भी नहीं थी।
- इस प्रकार औद्योगीकरण के फलस्वरुप स्लम पद्धति की शुरुआत हुई।
- शहर के साथ नई समस्याओं का जन्म -- शहरों ने कई नई-नई समस्याओं को जन्म दिया। मजदूरों की संख्या काफी अधिक थी इसलिए इनके लिए आवास की समस्या उत्पन्न हुई। कारखानों के मालिकों द्वारा आवास बनाए गए उसमें रात रोशनी स्वच्छ हवा भी उपलब्ध नहीं थी। इसलिए हेल्थ संबंधी समस्याएं उत्पन्न हुई।
- शहरों की आबादी बढ़ने के साथ-साथ बेरोजगारी की समस्या भी तेज हो गई। बेरोजगारी की समस्या से कई भयंकर समस्याओं का जन्म हुआ। बेरोजगारी के फलस्वरुप नकरात्मक प्रकृति उत्पन्न हुई । लोगों के नैतिक पतन हुआ अपराध की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई। इस प्रकार शहरों ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया।
- रेशम मार्ग का अर्थ रेशम व्यापारीक केंद्र के मध्य विकसित ऐसे मार्ग जो एशिया के विशाल भागों को परस्पर जुड़ने के साथ ही यूरोप तथा उत्तरीअफ्रीका जा मिलते थे रेशम मार्ग कहलाते थे।
- केनाल कॉलोनी अथवा नहर बस्ती --भारत की अंग्रेजी सरकार ने आधा रेगिस्तानी भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया ताकि निर्यात के लिए गेहूं और कपास की खेती की जा सके। नहरों वाले प्रदेशों में पंजाब के अन्य स्थानों के लोगों को लाकर बसया गया। उनके बस्तियों को केनाल कॉलोनी (नहर बस्ती) कहां जाता था।
- भूमंडलीकरण- विभिन्न राष्ट्रों में लोगो, समान तथा सेवाओं उपलब्धता अवसर प्रदान करने की गतिविधियों की अनुमति को भूमंडलीकरण कहते हैं।
- भूमंडलीकरण बनने की प्रक्रिया में सहायक कारक भूमंडलीकरण माहौल बनने की प्रक्रिया इस प्रकार हैं --(1)व्यापार,(2) काम की तलाश में लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना, (3) पूंजी की वैश्विक आवाजाही
- (4) सांस्कृतिक आदान प्रदान।
- ग्रामीण तथा शहरी जीवन के बीच विभिन्नताएं --ग्रामीण और शहरी समाज में वर्गीकरण के कईआधार हैं जैसे--(1) आबादी आजीविका के साधन, प्राकृतिक वातावरण, शिक्षा, यातायात, हेल्थ, बिजली, पानी, सरक जैसी नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता, अर्थव्यवस्था, जनसंख्या घनत्व, आदि। (2) इसके साथ ही परिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, परंपरा, व्यवहार, दृष्टिकोण आदि के स्तर पर भी भिन्नताएं स्पष्ट रूप से झलकती है।
- आर्थिक तथा प्रशासनिक संदर्भ में ग्रामीण तथा शहरी बनावट के आधार-- आर्थिक तथा प्रशासनिक संदर्भ में ग्रामीण तथा शहरी व्यवस्था के दो प्रमुख आधार हैं (1) जनसंख्या का घनत्व (2) कृषि आधारित आर्थिक क्रियाओं का अनुपात। शहरों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है जबकि कृषि आधारित आर्थिक क्रियाओं का अनुपात गांवों में अधिक होते हैं।
- 16वीशताब्दी में दुनिया के सिकुड़ने का अर्थ- इसका मतलब यह है कि 16वीशताब्दी में संसार के देश एक- दूसरे के निकट आने लगे थे। उनके बीच आपसी आदान-प्रदान बढ़ गया था। इस प्रकार वह एक दूसरे पर निर्भर हो गए थे।
- ब्रिटेन वुड्स सम्मेलन के मुख्य उद्देश्य-- ब्रिटेन वुड्स सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था कि औधोगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता तथा पूर्ण रोजगार बनाए रखा जाए क्योंकि इसी आधार पर विश्व शांति भी स्थापित की जा सकती है।
- भूमंडलीकरण में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का योगदान -- भूमंडलीकरण के प्रभाव को कायम करने में विश्व बैंक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष विश्व व्यापार संस्था तथा पूंजीवादी देशों की बड़ी बड़ी व्यापारीक और औद्योगिक कंपनियां का बहुत बड़ा योगदान है। साथी अपने आर्थिक हितों की सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए गठित क्षेत्रीय संगठनों जैसे- जी-8 ओपन, आसियान, यूरोपीय संघ, जी-15, जी-77, दक्षेस (सार्क) आदि का भी भूमंडलीकरण की प्रक्रिया को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।
- 1929 ईस्वी के आर्थिक संकट के कारण- 1929 ईस्वी के आर्थिक संकट का प्रमुख कारण था अति उत्पादन। प्रथम महायुद्ध के समय कृषि तथा औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि की गई थी। युद्ध के बाद उत्पादन के अनुपात में की संख्या खरीदारों की संख्या काफी कम थी। इससे उद्योगपतियों तथा कृषिको दोनों की स्थिति खराब हो गई। युद्ध के बाद अपने अर्थव्यवस्था सुधारने हेतु अनेक देशों ने अमेरिकी पूंजीपतियों से कर्ज ले रखा था संकट के समय पूंजीपति कर्ज वापस मांगने लगे इससे कर्जदार देश संकट में पड़ गए ।
- संकट के समय सभी देश संरक्षनात्मक उपाय कर अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खुद बनाने का प्रयास करने लगे। इससे विश्व बाजार आधारित व्यवस्था चरमरा गई।
- अमेरिकी पूंजीपतियों ने यूरोप को कर्ज ना देकर मुद्रा बाजार में सट्टा लगाना शुरू किया। इससे यूरोप की स्थिति खराब हो गई । उधर शेयर की भाव अमेरिका में तेजी से नीचे गिरे। इस प्रकार सभी कारणों से 1929 ईस्वी के आर्थिक मंदी की शुरुआत की।
- भूमंडलीकरण के भारत पर प्रभाव -भूमंडलीकरण का भारत पर व्यापक रूप से प्रभाव पड़ा। इसके फलस्वरुप भारत में रोजगार के अवसर बढ़े हैं। भारत में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनी का आगमन हुआ जो विभिन्न तरह के उपभोक्ता सामग्री का उत्पादन करती है अथवा सेवा क्षेत्र से कार्य कर रही है। भूमंडलीकरण के फलस्वरुप शिक्षा एवं हेल्थ के बेहतर विकल्प उपलब्ध हुए हैं। हम इसके उत्पादों के उपभोग कर रहे हैं। भूमंडलीकरण के कारण लोगों के जीवन स्तर मैं सुधार आया है। उनका जीवन सुविधापूर्ण हुआ है।
- विश्व बाजार के स्वरूप- विश्वबाजार का स्वरूप काफी व्यापक होता है। इसका सीमा क्षेत्र केवल एक राष्ट्र तक सीमित नहीं होता है बल्कि कच्चे माल की प्राप्ति निर्माण तथा उत्पादों का विक्रय इत्यादि एक ही नहीं बल्कि कई देशों में होता है ।इसमें अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्था के संश्लेषण के फलस्वरुप एक विश्वव्यापी और अर्थतंत्र का उद्भव होता है । विश्व बाजार के क्रियाकलापों में विभिन्न देशों के व्यापारियों का योगदान होता है होता है ।
- विश्व बाजार के चलन से फायदा या नुकसान- विश्व बाजार में उद्योग व्यापार को तीव्र गति से बढ़ाया। औपनिवेशिक देशों में सीमित मात्रा में औधोगिकरण तथा आधुनिकीकरण बढ़ाया। इतने औपनिवेशक देशों में रेलमार्ग, बंदरगाह, खनन जैसे संरचनात्मक क्षेत्र का विकास भी किया। कृषि क्षेत्र में भी इसके कारण क्रांतिकारी परिवर्तन आए। विश्व बाजार में इन तकनीकों का सृजन किया। इन तकनीकों ने विश्व बाजार और उनके लाभ को कई गुना बढ़ा दिया।
- विश्व बाजार के कुछ नकारात्मक पहलू भी पहलू भी थे विश्व बाजार में एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवाद के रूप में एक नए युग की शुरुआत की। इसने उपनिवेशों के शोषण को और तीव्र किया। इसके फलस्वरुप उपनिवेशों की अपनी स्थानीय आत्मनिर्भर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जिसका आधार कृषि और लघु उद्योग और कुटीर उद्योग था नष्ट हो गई। व्यापार में वृद्धि और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ निकटता ने अकाल और गरीबी जैसे मानवीय संकट को जन्म दिया। यूरोपीय देश के बीच साम्राज्यवाद प्रतिस्पर्धा को पैदा किया जिससे उग्र राष्ट्रवाद का जन्म हुआ। इन देशों को इसका परिणाम प्रथम महायुद्ध में के रूप में झेलना पड़ा।
- छापाखाना- छापाखाना एक यंत्र जिसके द्वारा पर छपाई संभव हो सकी है। छापाखाना के कारण ही आज किताबों की भारी संख्या में छपाई संभव है। छापाखाना के आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को जाता है।
- बाइबिल- बाइबिल का ईसाईयों का पवित्र धर्म ग्रंथ है गुटेनबर्ग ने अपने मुद्रण यंत्र हैंड प्रेस से सबसे पहली पुस्तक जो छापी थी वह बाइबल थी।
- वर्नाक्यूलर एक्ट- वर्नाक्यूलर प्रेस 1978 ईस्वी में लॉर्ड लिटन द्वारा शुरू किया गया था। इस एक्ट के द्वारा भारतीय प्रेस पर नियंत्रण रखने का प्रयास किया गया। यह एक्ट भारतीय समाचार पत्रों की भाषा और भावना को नियंत्रित करने में सफल रहा। इसलिए जानता में असंतोष की भावना को जन्म दिया
- 'मराठा' समाचार पत्र- मराठा English में प्रकाशित समाचार पत्र था इसका प्रकाशन 1881 ईसवी में मुंबई में हुआ था बाल गंगाधर तिलक इस के संपादक थे। यह उग्र राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित पत्र था। जिसका जनमानस पर व्यापक प्रभाव था।
- मार्टिन लूथर - मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरूतियों की आलोचना करते हुए अपनी 95 स्थापनाए लिखें। इसके माध्यम से शास्त्रार्थ के लिए चुनौती भी दी। लूथर के लेख आम लोगों में काफी लोकप्रिय हुए। लूथर ने धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत की जिसके फलस्वरुप प्रोटेस्टनवाद जन्म हुआ
- प्रोटेस्टनवाद -मार्टिन लूथर द्वारा रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों कि और आम लोगों का ध्यान आकृष्ट कराया जाने के बाद कैथोलिक चर्च का विभाजन हो गया। धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई सुधारवादियों के प्रतिवाद के कारण ही इसे प्रोटेस्टनवाद कहते हैं।
- सर सैयद अहमद- सर सैयद अहमद पहले भारतीय मुसलमान थे जिन्होंने मुसलमानों को संगठित करने, उनकी अंग्रेजी भाषा में शिक्षा तथा आधुनिकरण का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने साइंटिफिक सोसाइटी की तथा अलीगढ़ में एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की। उन्होंने अलीगढ़ जरनल नाम से पत्र भी निकाला।
- गुटेनबर्ग- गुटेनबर्ग जर्मनी के मेंज नगर में कृषक जमीनदार- व्यापारी परिवार में जन्म लिया था। गुटेनबर्ग ने हैंड प्रेस नामक मुद्रण यंत्र बनाया था जिससे सुंदर सस्ता और शीघ्र छपाई करना संभव हुआ। इसलिए छापाखाना के आविष्कार का श्रेय गुटेनबर्ग को ही जाता है।
- पांडुलिपि- हस्तलिखित पुस्तक को पांडुलिपि कहते हैं छापाखाना के विकास से पहले हस्तलिखित पांडुलिपियों को तैयार करने की पुरानी तथा समृद्ध परंपरा थी। पांडुलिपि काफी नाजुक, पुरानी, महंगी तथा दुर्लभ होती हैं। आम जनता की पहुंच की बाहर थी। छापाखाना के विकास के पहले पांडुलिपि ही पुस्तक का कार्य करती थी। पांडुलिपि हमारे पूर्वज के दुर्लभ ज्ञान का भंडार थी। इनका ध्यान अध्ययन करके आसानी से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
- इंकवीजीशन इंकवीजीशन एक विशेष धार्मिक अदालत थी जो मुख्यत: नास्तिकों के दमन हेतु कैथोलिक चर्च के आदेश को लागू करने काकाम करती थी। कृषक से लेकर बुद्धिजीवी तक सभी अपने हिसाब से बाइबिल की नई नई व्याख्या करने लगे तब ईश्वर एवं सृष्टि के बारे में रोमन कैथोलिक चर्च की मान्यताओं के विपरीत विचार आने से कैथोलिक चर्च क्रोध हो गया । तथाकथित धर्म विरोधी विचारों को दबाने के लिए उसने इंकवीजीशन शुरू किया।
- छापाखाना से लाभ- छापाखाना लकड़ी के ब्लॉक द्वारा होता था। यह मुद्रण कला समरकंद परसिया मार्ग से यूरोप तक पहुंची। इसे यूरोप पहुंचाने वाला रोमन मिशनरी एवं मार्कोपोलो था। वहां इस कला का प्रयोग कर ताश एवं धार्मिक चित्र छपने के लिए किया था किंतु रोमन लिपि में अक्षरों की संख्या कम थी। इसलिए लकड़ी तथा धातु के बने घुमावदार टाइप का प्रसार तेजी से हुआ। छापाखाना से ज्यादा मात्रा में जल्दी छपने लगी। फलस्वरुप ज्ञान का वितरण संपूर्ण विश्व में तेजी से फैल गया।
- स्वतंत्र भारत में प्रेस की भूमिका- भारत में प्रेस पत्रकारिता, साहित्य, मनोरंजन, ज्ञान- विज्ञान, प्रशासन राजनीति आदि को प्रत्यक्ष रुप से प्रभावित कर रहा है।यह ज्ञान की हर गतिविधियों प्रभावित कर रहा है। प्रेस देश की जनता को नेता की कारगुजारियों, घोटालों, एवं सरकारी नीतियों की से खामियों से अवगत करा रहा है।
- यंग इंडिया समाचार पत्र- यंग इंडिया अंग्रेजी में प्रकाशित समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन 1919 ईस्वी में अहमदाबाद से हुआ। इस के संपादक महात्मा गांधी थे। इसके माध्यम से महात्मा गांधी ने अपने विचारों तथा राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रचार जन जन तक किया।
Tuesday, 24 April 2018
Importance topic of history class10 इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं रोचक घटनाएं
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