राष्ट्रीय संसाधन- किसी राजनीतिक सीमा के
अंतर्गत खनिज पदार्थ, जल
संसाधन, वन, वन्य जीव एवं समुद्री जीव
राष्ट्रीय संसाधन है।
अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र- किसी देश की तट रेखा से 200 N.M की दूरी का क्षेत्र आर्थिक अपवर्जक क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
डाका अर्थव्यवस्था- मानव एवं तकनीकी शोषणत्मक की प्रवृत्ति को डाका अर्थव्यवस्था कहा जाता है
स्टॉकहोम- पर्यावरण संरक्षण हेतु
सर्वप्रथम स्टॉकहोम में विश्व शिखर सम्मेलन 1972 ईस्वी में आयोजित हुआ। इसी सम्मेलन के पश्चात
प्रतिवर्ष 5 जून
संपूर्ण विश्व में पर्यावरण दिवस के रुप में मनाया जाता है।
प्रथम पृथ्वीसम्मेलन- प्रथम पृथ्वीसम्मेलन का आयोजन 3-14 जून 1992 ईस्वी को रे रियो- डी- जेनेरो में
किया गया। विकसित
एवं विकासशील देशों के लगभग 178 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में ग्लोबल-
वार्मिंग, वन
संरक्षण, जैव
विविधता, कार्यक्रम21 एवं रियो घोषणा पत्र पर
समझौता किया गया।
कार्यक्रम 21(Agenda21)-
यह
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास तत्ववाधान में रियो- डी- जेनेरो सम्मेलन में राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा
स्वीकृत 800 पृष्ठीय एक घोषणापत्र हैं सतत विकास को प्राप्त करने के लिए 21 कार्यक्रमों को स्वीकृत
किया गया । एजेंडा
21
को
गठित करने हेतु सभी
देश को निर्देश दिए गए तथा इस पर होने वाले खर्च के वाहन हेतु विश्व पर्यावरण कोष
की स्थापना की गई।
द्वितीय पृथ्वी सम्मेलन- द्वितीय पृथ्वी सम्मेलन का
आयोजन 23 से 27 जून 1997 ईस्वी को न्यूयॉर्क में प्रथम सम्मेलन के मूल्यांकन के लिए 5 वर्ष बाद आयोजित हुआ। इसे प्लस -5 सम्मेलन भी कहा जाता है।
क्योटो सम्मेलन-क्योटो सम्मेलन दिसंबर 1997 ईस्वी में ग्लोबल वार्मिंग
से बचाने के लिए जापान के क्योटोमें सम्मेलन आयोजित हुए। जिसमें 159 देशों ने भाग लिया इसमें 6 गैस (CO2, मीथेन, N2O,HFC,
फ्लोरो
कार्बन सल्फर
हेक्सा क्लोराइड) को ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेवार मानते हुए इसके
उपयोग में कटौती की सहमति बनी । जहां यूरोपीय संघ ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन
में 8% अमेरिका 7% एवं जापान 6% की कटौती पर सहमत हुए। इसे मांट्रियल समझौता 1987 का विस्तार भी माना जा सकता
है। इस
सम्मेलन को पर्यावरण सम्मेलन या ग्रीन हाउस सम्मेलन के नाम माना जाता है।
तृतीयपृथ्वी सम्मेलन - इसका आयोजन 10 वर्ष बाद 26 अगस्त - 4 सितंबर 2002 ईस्वी में जोहानेसबर्ग में
आयोजित हुआ। इस
सम्मेलन में पर्यावरण संबंधी 150 धाराओं पर विश्वस्तरीय सहमति तैयार करना था और इस
सम्मेलन का कोई परिणाम नहीं निकले। इस सम्मेलन में के विभिन्न
देशों से लगभग 2000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
दियारा भूमि -उत्तर बिहार में बालू प्रधान जलोढ़ को दियारा
भूमि कहते हैं। मक्का की कृषि के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
पवन अपरदन वाले क्षेत्रों
में पट्टिका कृषि श्रेयस्कर है।
पहाड़ी क्षेत्रों में
समोच्च जुताई द्वारा मृदा अपरदन रोका जा सकता है।
वृक्षारोपण मृदा संरक्षण की सबसे बड़ी शर्त है।
भारत में 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि का नुकसान हुआ है भूमि का 28% वन क्षेत्र एवं 56 % जल अंतर्गत है
जल की
उपलब्धता- विश्व के कुल जल- आयतन का 96. 5% जल महासागरों में ही पाया जाता है। उनमें मात्र 2.5 प्रतिशतमृदु जल है।
विश्व के कुल मृदु जल
के लगभग 70% अंटार्टिका, ग्रीनलैंड एवं पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ की चादर या हिमनद के रूप
में पाया जाता है और लगभग 25% भूमिगत जल स्वच्छके रूप जल के रूप में उपलब्ध है।
विश्व की बड़ी
नदियां- ब्रह्मपुत्र एवं गंगा विश्व की 10 बड़ी नदियों में से एक है। इन नदियों को
विश्व की बड़ी नदियों में क्रमशा आठवां एवं दसवां स्थान प्राप्त है।
जल का अंश- प्राणियों में
65% तथा पौधों में 65 से 99% जल का अंश विद्यमान रहता
है।
नर्मदा बचाओ
आंदोलन 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' गैर सरकारी संगठन (NGO) है जो स्थानीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों, मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, को गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध के
विरोध के लिए प्रेरित करता है।
जल संकट -स्वीडन के एक विशेषज्ञ Falkon Mark के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 1000
घन मीटर जल की
आवश्यकता पड़ती है। इससे कम जल उपलब्धता जल
संकट है।
जल विधुत- वर्तमान समय में कुल विधुत का लगभग 22%
भाग जल विधुत से प्राप्त होता
है।
जल प्रदूषण- केवल कानपुर
में 180 चमड़े के कारखाने हैं जो प्रतिदिन 5800000
लीटर मल जल
गंगा में विसर्जित करते हैं।
बाधक तत्व- शहरीकरण, भवन निर्माण,रेल मार्ग ,सड़क पक्कीकरण, भूमि जल पूर्ति के बाधक तत्व है।
भूमिगत जल का 22% भाग का संचय वर्षा जल से भूमि में होता है।
बिहार में तीन अर्तिप्राचीन परियोजना- (1) सोन,
(2)गंडक, (3) कोसी परियोजना।
छत जल संग्रहण-मेघालय स्थित चेरापूंजी एवं मौसिनराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती है जहां पर जल संकट
का निवारण (लगभग 25%) छत जल संग्रहण से होता है।
वन - वन उस बड़े भूभाग को वन कहते हैं जो पेड़ पौधे एवं झाड़ियों द्वारा आच्छादित होते हैं। जो वन स्वत:
विकसित होते हैं उसे प्राकृतिक वन और जो वन मानव द्वारा विकसित किए जाते हैं वह
मानव निर्मित वन कहलाते हैं। वन जीव विविधताओं का आवास स्थल है।
उप जातियां- हमारे देश में लगभग 8100 वन्य प्राणी उप जातियां और लगभग 45000 वनस्पतियों प्रजातियां पाई जाती हैं। वनस्पतियों की
जातियों में से लगभग 15000 भारतीय मूल की है।
वेट लैंड निम्न तलीय जल जमाव वाले क्षेत्र को वेट लैंड कहा जाता है । स्थानीय तौर पर इसे चौर,भानगर, मॉन, टाल कहा जाता है।
अमृता देवी -अमृता देवी राजस्थान के विशनोई गांव
की रहने वाली थी। उसने 1731 ईसवी में राजा के आदेश को दरकिनार कर लकड़ी काटने
वालों का विरोध किया किया था। राजा के लिए नवीन महल निर्माण
हेतु लकड़ी काटा जाना था। अमृता देवी के साथ गांव वालों ने भी राजा के आदमियों का विरोध किया। महाराजा को जब इसकी
जानकारी मिली तो उन्हें बहुत बुरा लगाऔर अपने राज्य में वनों की कटाई
पर रोक लगा दी।
रेड डाटा इसमें सामान्य
प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे से अवगत कराया जाता है । रेड डाटा में संकटग्रस्त
प्रजातियां सर्वमान्य रूप से पहचान होती है। विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों की
रेड डाटा में एक तुलनात्मक स्थिति के प्रति चेतावनी देती है। स्थानीय स्तर
पर संकटग्रस्त प्रजातियों की पहचान एवं उनके संरक्षण से संबंधित कार्यक्रम को
प्रोत्साहन देना रेड डाटा का मुख्य कार्य है।
जैवअपहरण- प्रकृतिजनित तथा करोड़ो वर्षो की विकास की क्रिया में स्थापित अनुवांशिक गुण में फेरबदल को जैवअपहरण कहते हैं।
चिपको आंदोलन: उत्तर प्रदेश के टिहरी - गढ़वाल पर्वतीय में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में
अनपढ़ जनजातियों द्वारा 1972 ईस्वी में यह आंदोलन प्रारंभ हुआ था। इस आंदोलन में स्थानीय लोगों ठेकेदारों की
कुल्हाड़ी से हरे भरे पौधे को काटते देख, उसे बचाने के लिए अपने आगोश में पौधा को
घेरकर इसकी रक्षा करते थे। इसे कई देशों में स्वीकारा गया।
विश्व की एक
लाख कीट पतंगों की जातियों में से 60,000
जातियां भारत
में हैं
4100मछलियों की प्रजातियों में से 1693
प्रजातियां
भारत में हैं
विश्व की 9000 पक्षियों की जातियों में से लगभग 1200
भारत में पाई
जाती है और 4000 स्तनपाई जियो का 10 प्रतिशत भारत में हैं।
कॉफी के तीन
प्रमुख किस्म हैं (1)अरेबिका (2)लीबेरीका (3) रोबस्टा।
पश्मीना ऊन: एक विशेष नस्ल
की बकरियों के बालों से तैयार किया जाता है। यह बहुत ही
नर्म तथा मुलायम होता है तथा बहुत ज्यादा गर्मी प्रदान करता है। यह बकरियां
कश्मीर के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में गुर्जरों द्वारा पाली जाती है।
अंगोरा का ऊन:यह खरगोश के बालों से प्राप्त किया जाता है ।
कृत्रिम धागे:यह पेट्रो रासायनिक उत्पादन द्वारा तैयार किया जाता है जैसे - नायलॉन, होलिस्टन, पोलिस्टर रियान, एक्रिलिक और पॉलीमर।
उपभोक्ता
उद्योग: ऐसा उद्योग जो उत्पादक उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु करते हैं उसे उपभोक्ता उद्योग कहते
हैं। इसमें विशेष रूप से गृहोपयोगी वस्तुओं का उत्पादन होता है। जैसे कागज
उद्योग, दंत मंजन, पंखा, सीमेंट उद्योग इसके उत्तम उदाहरण है।
स्वच्छंद
उद्योग: कच्चे माल पर आधारित न होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक उद्योग को स्वच्छंद(Foot loose) उद्योग करते हैं।
उदारीकरण: उदारीकरण
द्वारा उद्योग तथा व्यापार को लालफीताशाही के अनावश्यक प्रतिबंधों से मुक्त करके
उपयोगी बनाना है।
निजीकरण: देश के अधिकतर उद्योगों के स्वामित्व, नियंत्रण तथा प्रबंध निजी क्षेत्र के अंतर्गत
किया जाना निजी करण कहलाता है। इसके परिणाम स्वरुप अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार
कम या समाप्त हो जाता है।
बहुराष्ट्रीय
कंपनी: ऐसी कंपनी जो किसी एक देश में स्थित मुख्यालय से अनेक देशों में उत्पादों और
सेवाओं का नियंत्रण करती है।
प्रदूषण
फैलाने वाले उद्योग: चर्म रोग, तेल शोधक उद्योग, डीजल कोयले पर आधारित उद्योग, धातु उद्योग, पेपरउद्योग, और सिलिकॉन उद्योग।
देश में पहला
वस्त्र पार्क: सिले सिलाए वस्त्रों का निर्यात संवर्धन के लिए एक वस्त्र पार्क की स्थापना
तमिलनाडु में तिरुपुर में किया गया।
मस्कोव्हाइट(Muscovite): यह बहुत ही उच्च कोटि का अभ्रक होता है इसे बंगाली रूबी(Bengal Ruby) के नाम से भी जाना जाता है। यह लाल तांबे के रंग का होता है इसकी परते
बहुत मोटी होती है। इसकी परत 15 से 30 सेंटीमीटर लंबी है और 8 से 10 सेंटीमीटर चौड़ी होती है अभ्रक मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है (1)मस्कोव्हाइट, (2) फ्लोगोंफाइट एवं (3)बायोटाइट ।
संचार के
प्रमुख साधन: डाक सेवा, टेलीग्राम, टेलीफोन, मोबाइल, रेडियो, समाचार पत्र, इंटरनेट ,ईमेल है।
छठ पर्व: छठ मुख्य रूप से बिहार पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक आंचलिक पर्व है। यह बहुत ही पावन
पर्व है । अब यह भारत के बहुत क्षेत्र में मनाया जाता है। यह वर्ष में
दो बार संपन्न होता है। एक शारदीय और दूसरा चैती
छठ कहलाता है जो क्रमश: कार्तिकअमावस्या के बाद छठे दिन एवं चैतअमावस्या के बाद छठे दिनआयोजित होता
है। इस पर्व में पानी में डूबकर भास्कर को अर्ध्यअर्पित किया जाता है ।
शुष्क पतझड़
वन: आर्द्र पतझड़ वन एवं शुष्क पतझड़ वन को 125 सेंटीमीटर वर्षा रेखा विभाजित करती है।
राष्ट्रीय
उद्यान: संजय गांधी जैविक उद्यान, पटना, लगभग 980 एकड़ विकसित हैं और यह बिहार के इकलौता राष्ट्रीय
उद्यान है। कावर झील प्रवासी पक्षियों का प्रमुख ठहराव है। प्रसिद्ध
पक्षी वैज्ञानिक डॉ सलीम अली ने इसे 'पक्षियों का स्वर्ग' कहा था। कावर झील में 300 प्रजातियों की पक्षियों का अध्ययन एक साथ संभव है।
हरित क्रांति
:हमारे देश की
कृषि में क्रांतिकारी विकास हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है इसमें मुख्यत: नए बीज एवं खादो
और उर्वरकों का प्रयोग तथा सुनिश्चित जल आपूर्ति की व्यवस्था के फलस्वरुप कुछ
अनाजों की उपज में उम्मीद से अधिक वृद्धि हुई है।
रोपण कृषि :बड़ी- बड़ी आर्थिक इकाइयों में व्यापारिक उत्पादन के लिए एक या एक से अधिक किस्म
के पौधे के रोपण की पद्धति को रोपण कहते हैं
पृथ्वी पर
मौजूद भू -आकृतियां त्रिआयामी है।
हैशयूर विधि का विकास ऑस्ट्रेलिया के सैन्य अधिकारी लेहमान ने किया
था।
संसाधन: पर्यावरण में
पाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु जो हमारी जरूरतों को पूरा कर सकती हैं , संसाधन कहलाती है। शर्त यह है कि वस्तु तकनीकी रूप से शुगम
आर्थिक रूप से उपयोगी तथा संस्कृति रूप से मान्य हो।
संभाव्य
संसाधन: संभाव्य संसाधन वह संसाधन है जिनकी खोज तो हो
चुकी है परंतु का उपयोग नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए राजस्थान तथा गुजरात में पवन
ऊर्जा तथा सौर ऊर्जा के विकास की अत्याधिक संभावनाएं हैं।
जैव संसाधन की
प्राप्ति: जैव संसाधन की प्राप्ति जीवमंडल से होती है और इनमें जीवन व्यापत होता है जैसे -मनुष्य, वनस्पतिजात प्राणीजात मत्स्य जीवन पशुधन आदि।
अजैव संसाधन : वह सारे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं अजैव संसाधन कहलाते
हैं। उदाहरण के लिए चट्टानें और धातुएं।
मानव के लिए
संसाधन जरूरी: मानव की जरूरतों की पूर्ति संसाधन करते हैं। संसाधनों के
अभाव में जी नहीं सकते। संसाधन मानव के जीवन को सुगम बनाते हैं।
मानव एक
महत्वपूर्ण संसाधन है कैसे: लोगों को विचार है कि संसाधन प्रकृति के
निशुल्क उपहार होते हैं परंतु ऐसा नहीं है। सभी संसाधन मनुष्य के क्रियाकलापों
के प्रतिफल होते हैं। मनुष्य प्रकृति में उपलब्ध पदार्थों को
संसाधन में बदलता है। इस दृष्टि से मनुष्य काफी
महत्वपूर्ण संसाधन है।
संसाधनों के
विकास में मनुष्य की भूमिका: (1)मानव प्रौद्योगिकी द्वारा प्रकृति के साथ क्रिया
करता है तथा अपने आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए संस्थाओं का निर्माण
करता है। (2) मनुष्य पर्यावरण में पाए जाने वाले पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित करता
है तथा उन्हें प्रयोग करता है ।
मृदा संरक्षण
में फसल चक्रण की भूमिका :मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है। मृदा के बनने
और अपरदन की क्रियाएं आमतौर पर साथ साथ चलती है और दोनों में संतुलन होता है। मृदा संरक्षण
के विविध तरीके हो सकते हैं जो मानवीय क्रिया - कलाप द्वारा अनु प्रयोग में लाया
जा सकते हैं। फसल चक्र द्वारा मृदा के पोषणीय स्तर को बरकरार रखा जा सकता है। गेहूं, कपास, मक्का, आलू आदि के लगातार होने से मृदा में कमी उत्पन्न होती है। इसे तेलहन दलहन
पौधे की खेती के द्वारा पुनः प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए फसल चक्र मृदा
संरक्षण में सहायक सिद्ध होता है।
जल संसाधन के
उपयोग: जीवन में जल के उपयोग की सूची लंबी है। पेयजल, घरेलू कार्य, सिंचाई उद्योग, एवं जन-स्वास्थ्य तथा मल मूत्र विसर्जन इत्यादि कार्यों के लिए जल अपरिहार्य है। जल कृषि, वानिकी, जल क्रीड़ा जैसे कार्य की कल्पना बिना जल के नहीं की जा सकती हैं। आधुनिक
औद्योगिक युग में भी जल कहीं विद्युत पैदा करने में प्रयुक्त हो रहा है तो कहीं
औद्योगिक मशीनों को ठंडा करने में। जल का सबसे अधिक उपयोग सिंचाई के लिए होता
है। पर्याप्त मात्रा में फसलों की उत्पादकता और
गुणवत्ता को सुनिश्चित करती है।
अंतरराज्यीय
जल विवाद: पिछले कुछ वर्षों में बहुउद्देशीय परियोजनाएं और बड़े बांध कई कारणों से परिनिरक्षण और विरोध के
विषय बन गए हैं। बहुउद्देशीय परियोजनाओं की लागत और लाभ के बंटवारे के लेकर अंतरराज्यीय लागत
बढ़ गई है। कृष्णा- गोदावरी विवाद की शुरुआत महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोयना पर जल विद्युत
परियोजना के लिए बांध बनाकर जल की दिशा परिवर्तन कर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सरकार
द्वारा आपत्ति जताई जाने से हुई। इससे राज्यों में पड़ने वाली
नदी के निचले हिस्सों में जल प्रवाह कम हो जाएगा और कृषि तथा उद्योग पर विपरीत असर
पड़ेगा।
समोच्च कृषि : ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समांतर हल चलाने से ढाल के साथ साथ जल
की बहाव की गति घटती है । इसे समोच्च जुताई(Contour ploughing) कहा जाता है। ढाल वाली भूमि पर सोपानबनाए जा सकते हैं । पहाड़ी ढलानों
को काटकर कई चोरी सीढ़ियां बना दी जाती है । ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाएं बना दी जाती
है। सोपान कृषि अथवा समोच्च कृषि मृदा अपरदन को नियंत्रण करती है। इस तरह ढाल
वाली भूमि पर समोच्च कृषि की जाती है। पश्चिमी और मध्य हिमालय में समोच्च कृषि अथवा सीढ़ीदार कृषि
काफी विकसित है।
बहुउद्देशीय
परियोजना: वैसी परियोजना जिसके द्वारा एक साथ कई कार्य संपादित हो बहुउद्देशीय परियोजना
कहलाती है। नदी घाटी परियोजना द्वारा बाढ़ नियंत्रण, मृदा अपरदन पर रोक, विद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन, पर्यटन, आदि कई कार्य किए जाते हैं।
भारत में डेल्टा का विकास : पूर्वी तटीय मैदान, विशेषकर महानदी, गोदावरी ,कृष्णा और कावेरी नदियों के डेल्ट जलोढ़ मृदा से बना है। जलोढ़ मृदा
बहुत उपजाऊ होती है। जलोढ़ मृदा में पोटाश, फास्फोरस, और चूना जैसे तत्व की प्रधानता होती है जो इनको गन्ने, चावल, गेहूं और अन्य अनाजों और दलहनी फसलों की खेती के लिए उपयुक्त बनाती हैं। अधिक
उपजाऊ होने के कारण इस मिट्टी पर गहन कृषि की जाती है। परिणाम: यहां
जनसंख्या घनत्व भी ऊंचा है।
बिहार में वन
संपदा की वर्तमान स्थिति: बिहार विभाजन के बाद बिहार में वनों की
स्थिति दयनीय हो गई है। वर्तमान में अधिकतर भूमि कृषि योग्य हैं। बिहार में 764.14 हेक्टेयर में ही वन क्षेत्र बच गया है जो बिहार के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 6.87 प्रतिशत है । यहां प्रति व्यक्ति वन भूमि का औसत मात्र 0.05
हेक्टेयर है जो
राष्ट्रीय औसत 0.53 हेक्टेयर से बहुत ही कम है। बिहार के 38 जिलों में से 17 जिलों में वन क्षेत्र समाप्त हो गया है। पश्चिमी
चंपारण, मुंगेर, जमुई, नवादा, नालंदा, रोहतास, कैमूर, और औरंगाबाद जिले के वन की स्थिति कुछ बेहतर है
जिसका कुल क्षेत्रफल 3700 वर्ग किलोमीटर है। देश में शेष अवक्रमित वन क्षेत्र हैं जहां वन
के नाम पर केवल झुरमुट बच गए हैं। सिवान, सासाराम, भोजपुर, बक्सर, पटना, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, बेगूसराय, मधेपुरा, खगड़िया, में 1% से भी कम भूमि में वन मिलते हैं।
वन विनाश के
मुख्य कारक: वन विनाश के मुख्य कारक इस प्रकार हैं
(1)भारत में वन विनाश के एक बड़ा कारण कृषिगत भूमि का फैलाव है। पूर्वोत्तर और मध्य भारत में जनजातीयक्षेत्र
में स्थानांतरी खेती और बर्न खेती के चलते वनों का हास
हुआ है।
(2) बड़ी विकास योजनाओं से भी वनों को बहुत नुकसान हुआ है।
(3) वन एवं वन्य जीव को विनाश में पशुचरण और ईंधन के लिए लकड़ियों के उपयोग का भी
काफी भूमिका रही है।
(4) रेल मार्ग, सड़क मार्ग निर्माण, औद्योगिक विकास, एवं नगरीकरण ने भी वन विस्तार को बड़े पैमाने पर तहस-नहस किया
है।
जल संकट :उद्देश्य जनित जल की अनुपलब्धता है जल संकट के रूप में जानी जाती
है। अतः जल संकट से अभिप्राय उस स्थिति से है जब विभिन्न
आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध नहीं होता। पृथ्वी पर
विशाल जल सागर होने एवं नवीकरणीय होने के बावजूद जल दुर्लभता एक जटिल समस्या है। प्राय: जल की कमी
इसके अति शोषण,एवं अति उपयोग समाज के विभिन्न वर्गों में जल का असमान वितरण
से उत्पन्न होती है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में
तीव्र गति से औद्योगीकरण एवं नगरीकरण का विकास हुआ है। उद्योगों की
वजह से मृदु जल पर दबाव बढ़ रहा है।
खनिज : खनिज वे प्राकृतिक वे प्राकृतिक यौगिक है जिनकी संरचना
तथा संघटन एक समान होते हैं।चट्टानों
तथा आयस्को में पाए जाते
हैं। इनकी उत्पत्ति भूगर्भ में होने वाली विभिन्न भू-वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा
हुई है। हीरा सबसे कठोर खनिज है तथा ग्रेफाइट सबसे मुलायम
होता है ।
भारत की
नदियों के प्रदूषण के कारण: स्वतंत्रता के पश्चात भारत में तीव्र गति से
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण हुआ है। उधोगो की वजह से मृदु जल पर दबाव बढ़ रहा है। शहरों में
बढ़ती आबादी एवं शहरी जीवन शैली के कारण जल एवं विद्युत की आवश्यकता में बहुत वृद्धि
हुई है। घरेलू एवं औद्योगिक अवशिष्ट नदी में गिराया जा रहा है। केवल कानपुर
में 180 चमड़े के कारखाने हैं जो प्रतिदिन 58 लाख लीटर मल-जल गंगा में विसर्जित करते हैं। सीवेज एवं
मल-जल भारत के अधिकांश नदियां प्रदूषित हो गई है । छोटी नदियां तो अत्यंत भी विषैली हो गई
है। बढ़ती जनसंख्या आधुनिकीकरण, नवीकरण और औद्योगीकरण का भारत की
नदियों पर अत्यधिक प्रभाव हर दिन गहराता जा रहा है। उपरोक्त
कारणों से भारत की नदी विशेषकर छोटी सरिताएं जहरीली धारा में परिवर्तित हो गई है और बड़ी
नदियां जैसे गंगा और यमुना कोई भी शुद्ध नहीं है। इसके परिणाम
स्वरुप संपूर्ण मानव जीवन खतरे में हैं।
संसाधन
निर्माण में तकनीक की भूमिका: जब पर्यावरण में मानव द्वारा यह तकनीक का
प्रयोग होता है तब सभ्यता विकसित होती है। अंतत: मानवीय जीवन निर्वाह के तौर-तरीके संसाधन की
स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं। सच तो यह है कि मानव भी संसाधन है क्योंकि इनके
पास ज्ञान (तकनीक) होता है, जिसके सहारे वह किसी भी वस्तु को उपयोगी बना सकता है । अत: यह भ्रम है कि
संसाधन एक प्राकृतिक उपहार है।जापान एक ऐसा देश है जो प्राकृतिक
संसाधन में अत्यंत विपिन है । यहां का मानव संसाधन, तकनीकी दृष्टि से इतना सवल है की उपलब्धि सभी
पदार्थों को विवेक पूर्ण उपयोग कर विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा है।
जलोढ़ मृदा: उत्तर भारत का
मैदान हिमालय के तीन मुख्य नदि प्रणालियों से सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र द्वारा लाए गए जलोढ़ के निक्षेप से बना है। बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड आदि राज्यों में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार है। राजस्थान, गुजरात में भी एक संकरी पट्टी के रूप में जलोढ़ मृदा का प्रसार है । पूर्वी
तटीय मैदान में स्थित महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों द्वारा निर्मित
डेल्टा का भी निर्माण जलोढ़ से ही हुआ है। कुल मिलाकर
भारत में लगभग 6.4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर जलोढ़ मृदा फैली हुई है।
यह मिट्टी
गन्ना, चावल, गेहूं, मक्का, दलहन जैसी फसलों के लिए उपयुक्त मानी जाती है अधिक उपजाऊ होने के कारण इस
मिट्टी पर गहन कृषि की जाती है। परिणामत: यहां जनसंख्या घनत्व भी अधिक हैं।
स्थानीय
मिट्टी :इस मिट्टी में चिकाऔर बालू की मात्रा लगभग समान होती है और कृषि के
लिए के लिए उपयुक्त होती है
बाहित मिट्टी: इस मिट्टी में
बालू कूड़ा करकट और जल की मात्रा अधिक होती है इस पर कृषि करना संभव
नहीं होता है।
पवन अपरदन
वाले क्षेत्र में किसी की कृषि पद्धति: पवन द्वारा अपरदन प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है । कृषि के गलत तरीके से भी मृदा अपरदन होता है। गलत ढंग से हल
चलाने जैसे ढाल पर से नीचे की ओर हल चलाने से वाहिकाएं बन जाती है, जिसके अंदर से बहता पानी आसानी से मृदा के कटाव करता है। पवन अपरदन वाले
क्षेत्रों में पट्टीका कृषि (Strip Farming) श्रेयस्कर है, जो फसलों के बीच की घाट की पटिया
विकसित कर की जाती है ।
प्राकृतिक
संसाधन का संरक्षण की उपयोगिता :संसाधन किसी भी तरह के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संसाधनों के विवेकहीन
उपभोग और अति उपयोग के कारण कई सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण समस्याएं पैदा हो सकती
है। समस्याओं के समाधान हेतु विभिन्न स्तरों पर पता है संरक्षण की आवश्यकता है। संसाधनों का
नियोजित एवं विवेकपूर्ण उपयोग ही संरक्षण कहलाता। इस संदर्भ में
दार्शनिक एवं चिंतक प्राण संगीत महात्मा गांधी के विचार प्रसांगिक है-" हमारे पास पेट भरने
के लिए बहुत कुछ है, लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं।" उनके अनुसार विश्वस्तर पर संसाधन संसाधन हरस के लिए लालची
और स्वार्थी व्यक्ति तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी कि शोषणत्मक प्रवृत्ति
जिम्मेदार हैं। वे अत्यधिक उत्पादन के विरुद्ध थे और इसके स्थान
पर अधिक बड़े जन समुदाय द्वारा उत्पादन के पक्षधर थे । उनका मानना था
कि इस प्रक्रिया में मजदूरों में कार्य क्षमता
के विकास की वृद्धि होगी और संसाधनों के विदोहन पर भी विराम लग सकेगा ।
हरित क्रांति:भारतीय कृषि में क्रांतिकारी विकास को हरित
क्रांति कहते हैं। नई प्रजातियों की फसल लगा कर, सिंचाई सुविधाओं, आधुनिक उपकरणों के प्रयोग, एवं रासायनिक खाद और उर्वरकों के प्रयोग से
भारतीय कृषि में सोना उत्पादन होने लगा है। भारतीय कृषि अब सहारा नहीं
बल्कि व्यवसाय बन गई है। कृषि में आई इस अमूल-चूल उत्थान को
हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है।
संसाधन: हमारे पर्यावरण में प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में
प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है जो आर्थिक रुप
से सामान्य और संस्कृत रूप से मान्य है, एक संसाधन है। कोयला, जल, वायु, खनिज आदि संसाधनों के उदाहरण है। वस्तुत: संसाधन का
अर्थ बहुत ही व्यापक है। प्रसिद्ध 'जिममार मैन' का कथनउल्लेखनीय है- "संसाधन होते नहीं
बनते हैं "।
संभावी
संसाधन: यह वे संसाधन है जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं परंतु इनका उपयोग
नहीं किया जाता है परंतु। उदाहरण के तौर पर भारत के पश्चिमी भाग विशेषकर राजस्थान
और गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों के अपार संभावना है परंतु इनका सही ढंग
से विकास नहीं हुआ है। उसी प्रकार हिमालय क्षेत्र का खनिज जिस का
उत्खनन अधिक गहराई में होने के कारण दुर्गम एवं महंगा है संभावी संसाधन है।
संचित कोष
संसाधन: यह संसाधन भंडार का ही हिस्सा है जिन्हें उपलब्ध तकनीकी ज्ञान की सहायता से
प्रयोग में लाया जा सकता है परंतु इनका उपयोग अभी आरंभ नहीं हुआ है। इनका उपयोग भविष्य में
विद्युत उत्पन्न करने में हो सकता है। वर्तमान में इनका उपयोग अत्यंत ही सीमित
हैं। ऐसे संसाधन वन में या बांधों में जल के रूप में संचित है।
परमाणु शक्ति: परमाणु शक्ति
निम्नलिखित खनिजों से प्राप्त होती है--
(1)यूरेनियम, (2) जिरकोनियम,
(3) थोरियम
परमाणु शक्ति
अनु केंद्र बिंदु से प्राप्त की जाती है। जब U-
235 जैसा भारी
तत्व धीमी गति वाली न्यूट्रन से टकराता है, तो यह अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करता
है। जैसे U-235 का 1 ग्राम 6.2
* 106 J उर्जा उत्पन्न
कर सकता है।
सौर ऊर्जा का उत्पादन :सौर संयंत्र द्वारा सौर ऊर्जा उत्पादित की जाती है। भारत में इसकी संभावनाए-(i) भारत ट्रॉपिकल जोन में स्थित है। (ii)यहां सूर्य के ताप बाहुलय में मिलता है। यह ऊर्जा का पुननवीकरण साधन है। (iii) इससे ना तो प्रदूषण होता है और ना ही अवशेष बचता है। (iv) इसकी स्थापना स्थानीय स्तर पर सरलता और सस्ते में की जा सकती हैं। इसका प्रयोग मुख्यतः कृषि एवं घरेलू क्षेत्रों में किया जाता है।
भारत में पवन
ऊर्जा के लिएअनुकूल परिस्थितियां: भारत को अब विश्व में पवन महाशक्ति का दर्जा
प्राप्त है । भारत में पवन ऊर्जा की सबसे बड़ी पेटी तमिलनाडु के नागरकोइल से मदुरई तक फैली
हुई है। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश कर्नाटक गुजरात केरल महाराष्ट्र लक्ष्यदीप में भी
महत्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म है। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के
प्रभावी प्रयोग के लिए विख्यात है।
पवन ऊर्जा के
लिए निम्नलिखित क्षेत्र अनुकूल माने जाते हैं-(i) वह क्षेत्र हैं जिनमें तेज गति से पवने बराबर
चलती रहती है। (ii)गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, एवं उड़ीसा आदि।
जल विद्युत
उत्पादन प्रमुख कारक: जल विद्युत जल से
हाइड्रो-टरबाइन चलाकर उत्पन्न किया जाता है । तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न किया जाता
है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है। जल विद्युत उत्पन्न करने के लिए नदियों के जल
को बहुत तेजी से ऊंचाई से गिराया जाता है। भारत में अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाएं हैं जो
विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती है। जैसे -भाखड़ा, नांगल, दामोदर घाटी, कारपोरेशन और
कोपीली
हाइड्रो परियोजना आदि।
नदी घाटी
परियोजना के मुख्य उद्देश्य: बहुउद्देशीय परियोजना वह है जो एक साथ अनेक
उद्देश्य को पूरा करती है पूर्वी ना। एक समन्वित नदी घाटी परियोजना का आयोजन इस
प्रकार किया जाता है कि विकास के अनेक लक्ष्यों को एक साथ प्राप्त किया जा सके। नदी घाटी
परियोजना के उद्देश्य निम्न है-(i) बाढ़ नियंत्रण,
(ii) सिंचाई के लिए
जल प्रदान करना, (iii) भू अपरदन रोकना,(iv) बिजली उत्पादन, (v) मत्स्य पालन। इसी कारण नदी
घाटी परियोजना को बहुउद्देशीययोजना कहा जाता है।
ताप शक्ति समाप्त संसाधन है: ताप शक्ति पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के प्रयोग
द्वारा उत्पन्न किया जाता है। इन ईंधनोंको जलाकर टरबाइन चलाकर ताप विद्युत
उत्पन्न की जाती है। ताप विद्युत गृह और अनवीकरण योग्य जीवाश्मी ईंधन का प्रयोग कर
विद्युत उत्पन्न किया जाता है । ताप शक्ति प्राप्त करने के जो संसाधन हैं वह अनवीकरणीय
हैं। इसलिए ताप शक्ति समाप्त संसाधन है।
पेट्रोलियम
निर्मित वस्तु :पेट्रोलियम ताप प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक अनेक भी विनिर्माण उद्योगों का कच्चा माल प्रदान करता
है। तेल शोधनशालाए- संश्लिष्ट वस्त्र, उर्वरक, तथा असंख्य रसायन उद्योगों में एक बिंदुओं पर
काम करती है। पेट्रोलियम का उपयोग संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक, रसायन उद्योग में होता है ।
सागर सम्राट मुंबई हाई शहर
से 115 किलोमीटर पश्चिम में स्थित कुएं का क्षेत्र है।मुंबई हाई के तेल
भंडारों की खोज ने देश की तेल मांग की आपूर्ति की काफी हद तक पूरा किया है। मुंबई हाई से तेल निकलवाने के
लिए 'सागर सम्राट' नामक जहाज द्वारा इस क्षेत्र में तेल की खोज की जाती है।
खनिजों के
संरक्षण एवं प्रबंधन: खनिज पदार्थ अशुद्ध अवस्था में खदानों से
प्राप्त होते हैं। खनिजों का भंडार सीमित है। अशुद्ध खनिजों का शुद्धिकरण खनिज प्रबंधन
कहलाता है। सीमित खनिज भंडारों का योजनाबद्ध तरीके से पीढ़ी दर पीढ़ी उपयोग खनिजों
के संरक्षण कहलाता है ।
सौर ऊर्जा का
उत्पादन: सौर ऊर्जा का उत्पादन सूरज प्रकाश से होता है। सौर प्लेट पर जब सूरज की
किरणें पड़ती है तब रासायनिक ऊर्जा बैटरी में संग्रहित की जाती है । बैटरी की
उर्जा से घरों को ऊर्जा मिलती है।
राष्ट्रीय
संसाधन तकनीकी तौर पर में पाए जाने वाले सारे संसाधन राष्ट्रीय हैं।
विकसित
संसाधन:विकसित संसाधन
वह संसाधन है जिनका सर्वेक्षण हो चुका है । उपयोग के लिए इनकी मात्रा भी भली भाति
निर्धारित कर ली गई है । इन संसाधनों का विकास,उपलब्ध तकनीकी तथा लागत पर निर्भर करता है।
संसाधनों के
संदर्भ में स्टॉक का अर्थ: स्टॉक्स अभिप्राय उन संसाधनों से है जो मानव
की जरूरत है तो पूरी कर सकते हैं के पास इन के विकास के लिए उचित तकनीक का अभाव है। उदाहरण के लिए
जल हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन नामक दो ज्वलनशील गैस का योगिक है। अत: ऊर्जा का बहुत बड़ा स्रोत है। हमारे पास इन गैसों को अलग
करने का तकनीक नहीं है।
एलमुनियम का उपयोग:(i) एलमुनियम का उपयोग बर्तन बनाने में होता है
क्योंकि यह ताप का सुचालक है। (ii)एलमुनियम बिजली का सुचालक है इसलिए इसका
प्रयोग बिजली के तारों को बनाने में होता है। (iii)
इसे एक पतली
परत के रूप में परिवर्तित किया जाता है जिसका प्रयोग घर तथा व्यवसाय दोनों में
होता है जैसे भोजन के पैकेट को बंद करने में।
(iv)एलमुनियम
हल्का तथा मजबूत होता है अत: वायुयान तथा अंतरिक्ष यान में भी इसका प्रयोग होता है।
चूना पत्थर की
उपयोगिता: चूने का पत्थर केल्सियम अथवा केल्सियम कार्बोनेट तथा
मैग्नीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है। यह मुख्यत: अवसादी चट्टानों में
मिलता है । चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल है। लौह- प्रगलन की
भाटियों में भी इसका प्रयोग होता है।
खनिज की मुख्य
उपयोगिता: खनिज हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका महत्व निम्नलिखित
तथ्य से जाना जा सकता है-(i) छोटी-सी सुई से लेकर विशाल जहाज तक खनिजों से ही बनाए जाते हैं। (ii)ऊंचे ऊंचे भवनों के निर्माण में खनिजों का प्रयोग होता है। (iii)खनिजों से रेलवे लाइन बनाई जाती है तथा सड़कों कों पक्का बनाया
जाता है। (iv)हमारी मशीनरी तथा औजार खनिजों से बनते हैं। (v)
कार, बस ,वायुयान आदि खनिजों से ही बनाए जाते हैं।
मैगनीज के
उपयोग: मैगनीज एक महत्वपूर्ण खनिज है जिसका उपयोग लोहा तथा इस्पात बनाने में होता है। मिश्रित धातु
बनाने के लिए मूलभूत कच्चा पदार्थ है। इसका प्रयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएं तथा बैटरी बनाने में होता है। मैगनीज के
प्रमुख उत्पादक राज्य हैं- उड़ीसा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश।
अभ्रक का
उपयोग: (i)अभ्रक का उपयोग इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स
उद्योगों में होता है। (ii) प्राचीन काल में इसका उपयोग दवाओं के लिए होता है। (iii) इसका उपयोग विद्युत उपकरण बनाने में होता है।
धात्विक खनिज
के दो प्रमुख पहचान : धात्विक खनिज के दो प्रमुख पहचान इस प्रकार
हैं
तन्यता- इन्हें पिघलाकर तार
खींची जा सकती है अर्थात धातु में तन्यता का गुण होता है ।
घटयता- धात्विक
खनिजों में घटयता का गुण पाया जाता है अर्थात हथौड़े से पीटने पर नहीं टूटते
हैं।
खनिजों की
विशेषता: खनिजों की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं
(i) खानो से अशुद्ध अवस्था में प्राप्त किए जाते हैं। (ii) इन्हें भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रिया द्वारा
शुद्ध किया जाता है। (iii) खनिजों का हमारे दैनिक जीवन में उपयोग है। (iv) खनिज पदार्थ किसी भी राष्ट्र के आर्थिक रीढ हैं ।
लौह एवं अलौह
खनिजों में अंतर: लौह खनिजों में लोहे की प्रतिशत अधिक होती है
जबकि अलौह खनिजों में लोहा नहीं पाया जाता है।
कैंसर रोग के
उपचार में वन का योगदान हिमालयन यव (चीर के प्रकार का सदाबहार पेड़)
एक औषधीय पौधा है जो हिमालय प्रदेश अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्र
में पाया जाता है । पेड़ की छाल, पत्ता, डालिया और पैरों से टकसोल(taxol) नामक रसायन निकाला जाता है । कैंसर रोगों के उपचार में इसका प्रयोग किया
जाता है। इस से बनाई गई दवा विश्व में सबसे अधिक बिकने वाली कैंसर औषधि है ।
10 लुप्त होने वाले पशु पक्षी के नाम: 10 विलुप्त होने वाले पशु पक्षियों के नाम निम्नलिखित हैं
(i)
एशियाई चीता, (ii) गुलाबी सिर वाली पक्षी,(iii) नीली भेड़,(iv) एशियाई हाथी,
(v) काला हिरण, (vi) भारतीय जंगली गधा, (vii) भारतीय गैंडा,
(viii)पहाड़ी कोयल, (ix)पूंछ वाला मकाक,तथा (x) जंगली चित्तीदार उल्लू
वन्य जीवों के ह्रास में प्रदूषण जनित समस्या: वन्य जीवों के ह्रास में प्रदूषण जनित समस्या का प्रभाव स्पष्ट
रुप से परिलक्षित होता है । वायु में फैले हुए प्रदूषको से सीधे प्रभावित
होते हैं। वन्य जीव जो भी दूषित भोजन करते हैं उनसे होने वाले बहुत से प्रदूषण जंतु उत्तक
द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं।
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरा वन्य
जीव पर विषैला प्रभाव डालता है। ओजोन और PAN से आंखों में जलन होती है और दृष्टि चली जाती
है। वायु में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड का प्रभाव उस स्थिति में अधिक होता है जब यह
फेफड़ों में आंद्र सोख लेती है। मोटर गाड़ियों से निकलने वाला शीशा वायुमंडल में जमा है तथा यह श्वसन
द्वाराअंदर चला जाता है। यह वन्य जीवों के लिए बहुत जहरीली होती है।
इस प्रकार प्रदूषण जनित समस्या वन्य जीवों को
में ह्रास भूमिका निभाती
है।
वन और वन्य
जीवों के संरक्षण में सहयोगी रीति रिवाज का उल्लेख: हमारे देश में वन तथा वन्य जीव संरक्षण से संबंधित कई रीति रिवाज अथवा प्रथाएं
प्रचलित हैं । इनमें से कुछ महत्वपूर्ण प्रथाएं का वर्णन इस
प्रकार है ।
(i) प्रकृति की पूजा- प्राचीन काल से ही कुछ कबीले प्रकृति की पूजा में विश्वास रखते हैं । उनके इस
विश्वास से कोई वनों का संरक्षण हुआ है।
(ii )विशेष वृक्ष की पूजा- कुछ समुदाय किसी एक विशेष वृक्ष को पूजनीय मानकर उसकी आदिकाल से उसकी सुरक्षा
करते हैं। उदाहरण के लिए छोटा नागपुर क्षेत्र के मुंडा तथा संथाल कबीले महुआ और कदम
के पेड़ की पूजा करते हैं।
(iii) विभिन्न संस्कृतियों का योगदान- भारतीय समाज कई संस्कृतियों का संगम है । इनमें से प्रत्येक संस्कृति के लोग
अपने परंपरागत तरीकों से प्रकृति तथा उसकी
रचनाओं की रक्षा करते हैं। उनके लिए झरने, शिखर, पौधे तथा जानवर पवित्र है। अत: इनकी
रक्षा की जाती है और प्रतिदिन उन्हें भोजन कराया जाता है।
वन के
पर्यावरणीय महत्व का वर्णन: पर्यावरण की गुणवत्ता को बढ़ाने में वनों का
योगदान निम्नलिखित है
(i) वह स्थानीय जलवायु को मृदुल बनाने में सहायक है । (ii) मृदा अपरदन को नियंत्रित करने तथा मिट्टी को उपजाऊ बनाने में सहायक हैं। (iii) नदी प्रवाह को नियमित करके बाढ़ की विभीषिका को कम करता है । वन तेज पवन की शक्ति को कम करता है और मरुस्थल
का विस्तार रुकता है।(iv) वन पर्यावरण में स्थिरता बनाए रखते हैं तथा परिस्थितिकी
संतुलन को बिगड़ने नहीं देता है।
वन्यजीवों के
ह्रास के चार प्रमुख कारण: वन्यजीवों के हर आज के चार प्रमुख कारक
निम्नलिखित हैं
(i) मनुष्य ने अपने आवास तथा उद्योगों की स्थापना के लिए बनो वनों का विनाश किया
है । फल स्वरुप नए वन्यजीवों के आश्रय स्थल को नष्ट हो गए हैं या विलुप्त होते जा रहे हैं।(ii) मनुष्य द्वारा किसी के विशिष्टीकरण का भी बुरा प्रभाव पड़ा है। (iii) कृषि में कीटनाशक रासायनिक दवाओं के छिड़काव से भी वन्यजीवों पर बुरा प्रभाव
पड़ता है।(iv) वन्यजीवों के शिकार के कारण भी बहुत सारे वन्यजीवों की असितत्व समाप्त हो गए
हैं या विलुप्त होने वाले हैं।
No comments:
Post a Comment